हिंदी कविताएं , लेख और कहानियां

Wednesday, 29 November 2017

मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक



मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक 
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा 

जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे 
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई 
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद् 
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं 
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना 
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई 
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा 


एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी 
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी 
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ 
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी 
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया 
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा 
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई 
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा 

तुम चली गई तो मन अकेला हुआ 
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ 
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी 
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ 
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर 
रूठती तुम रही मैं मानता रहा 
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक 
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
-kumar vishw.

Tuesday, 28 November 2017

आतंकवाद मुर्दाबाद



जय हिंद

           दिल है दोस्तों के लिए
         जान है इस वतन के लिए
          हम तो फूल खिलाएंगे
          इस प्यारे चमन के लिए
          कोई डरता है अंधेरों से
       तो कोई आतंकी झोकों से डरे
    इस जमीं को आँख क्या दिखायेगा तू
      सिकंदर जैसे भी पीठ दिखा  भगे 
     सोची भी हो गर शेर से खेलने की
    संभल जा वो अभी योग कर रहा है
       बिगड़ी तनिक भी मुद्रा उसकी
     उखाड़ फेकेगा तुझे इस जहाँ से परे..

Sunday, 26 November 2017

LIFE OF 1ST YR STUDENTS IN RIE(2017-18)



RIEA में आने वाले 2017-18  के प्रथम वर्ष के प्राणी ख़ुश रहने के लिए क्या-क्या नहीं करते और अंत में कुछ न कुछ बहाना मिल ही जाता है ख़ुश रहने का
आईये इसको एक कविता के माध्यम से समझते हैं-

RIE में खुश रहने के लिए और क्या चाहिए

एक सच्चा दोस्त, एक कप चाय
थोड़ा मधुर संगीत, कुछ बीते लम्हें
वो लिखने का शौक, कुछ करने का जज्बा
सर पे wifi, थोड़ी-सी राधिका से लड़ाई
RIE में खुश रहने के लिए और क्या चाहिए

एक मेज, एक कुर्सी ,कुछ अनमोल पुस्तकें
एक सच्चा प्यार, एक छोटी-सी मुस्कान
कुछ अच्छी आदतें, थोड़ी-सी गपशप
दो मीठे शब्द, एक प्यारा एहसास
RIE में खुश रहने के लिए और क्या चाहिए

विज्ञान के कुछ अनसुलझे रहस्य
न्यूटन की कुछ कथाएँ
वो स्कूल के दिन, एक पानी पूरी का ठेला
College की proxy, पुष्कर का मेला
RIE में भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए

देर रात B'day पार्टी , वो पिज़्ज़ा की खुशबू
PMC का मिलन, वो काँचा का डोसा
 आना की संध्या, एक कैंटीन की coffee
थोड़ी सी गुस्सा, एक मनाने की आदत
RIE में खुश रहने के लिए और क्या चाहिए

सुबह वो कम्बल की नींद, थोड़ा-सा नहाने का डर
Lib की वो शांति, Internals का कहर
Classes का bunks, उपस्थिति का डर
Practical की चिंता, Carnival तक का सफर
RIE में खुश रहने के लिए भला और क्या चाहिए

छुट्टी को outing का इंतज़ार, sunday की खीर का प्यार
द्वारे अंडे की रेड़ी, crushes की भरमार
पढ़ाई भी मज़े की , और freshers की लीला पार
बस कर भाई
खुश रहने के लिए अब कुछ नहीं चाहिए।

Saturday, 25 November 2017

शतरंजी दुनिया


This poem is dedicated to my juniors who are in my  school( SSDIC)


इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

चलो - गिरो - उठो 
फिर उठकर संभलना है 
पग - पग में हैं बाधाएं तुम्हारे 
चलते - चलते उन सबको राहों  में 
चूर -चूर कर जाना है 
इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

तुम ही हो स्वयं के निर्माता 
तुम ही हो अपने भाग्य -विधाता 
सत्य पथ पर चलकर तुमको 
सूरज-सा चमकना है 
इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

कोई भटकायेगा तो कोई पर व्यथा सुनाएगा 
कोई बांह मरोड़ेगा तो कोई हार-जीत समझायेगा 
इन सबसे तुम्हें बाहर निकलना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

बंधी रीति-रिवाजों से मुक्त होकर 
बल, बुद्धि व साहस से युक्त होकर 
थाम संघषों की पतवार 
अब तो दरिया पार करना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

पंखों को फैलाना है हौसलों के ऊपर से 
आसमाँ को चूमने 
तुझको ही जाना है 
इस कालचक्र में तुझको उड़कर दिखलाना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

Friday, 24 November 2017

DUSHYANT KUMAR POETRY



आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।

अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख ।

ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख ।

राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई, 
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
-दुष्यन्त कुमार

Wednesday, 22 November 2017

SHANTI-SHANTI-SHANTI


कैसा ये मौत का सिलसिला उमड़ पड़ा है?
अपने ही क्यों सदा के लिए सो गए?
क्या कसूर था मेरा इस जनम या उस जनम का?
वो कुदरती हाथ भी धीरे-धीरे न जाने कहाँ खो गए?
कहाँ ढूँढूं, कहाँ तलाश करूँ, कहाँ फ़रियाद करूँ?
अब आ भी जा अब तुझे कितना और याद करूँ?
वादा किया था जिंदगी साथ बिताने का
साथ जीने का और साथ मारने का
फिर क्यूँ तूने मुझे धोखा दिया,
सदा के लिए तन्हा किया,
मेरे दिल को तूने बिखरा दिया
कैसे रह पाऊंगा ये दोस्त तेरे बिना
तुझसे मिलने का न जाने क्या-क्या बहाना किया
सुला लेता तू अपनी मैय्यत पे मुझे
ये एक आखिरी गुनाह भी कबूल था
दुआ करूँगा इस मरणलोक से
तू सदा मेरे हृदय में सलामत रहे
वादा करता हूं कभी एक दिन जरूर मिलूंगा
उस जल्लाद मौत के सामने
फिर न दुनियां वालों का डर होगा 
न ही चिंता जिन्दा रहने की
बस उस पल का इंतज़ार है
बस उस पल का इंतज़ार है..
I miss u a lot mere dost kabhi na bhool paunga tujhe.....I love u

Thursday, 16 November 2017

जिंदगी की जफ़र

दोस्तों! इस संसार में हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है | अपने जीवन को सफल बनाने के लिए वो शिक्षा अनुभव के रूप में  सहायक  होती है |


जफ़र यूँ ही नहीं मिलती , मोर्चा संभालना पड़ता है , 
खुशबू  यूँ ही नहीं बिखरती , बीज बोना पड़ता है। 
ये जिंदगी एक बंद किताब है यारो ,
इसका सार यूँ ही नहीं मिलता , पन्ना - पन्ना पलटना पड़ता है। । 
 

Saturday, 11 November 2017

आओ कुछ बातें करें।


आज कुछ हटके हो जाये........ दिल से , शांति से , मुस्कुराकर पढ़ियेगा  आनंद आएगा -

आओ चलो कुछ बातें  करें ,
दिलों से दिलों की मुलाकातें  करें। 
एक लव्ज़ तुम कहो , दो लव्ज़ हम कहें ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।। 

आये हो तुम लजीले  नयनों के साथ ,
अल्फ़ाज़ों की दुनियाँ  में खो जाने के लिए। 
खोल कपाट हृदयों के ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।। 

संजोनी है छोटी-सी  महफूज़  दुनियां ,
सुदूर अनंत सितारों के पार। 
आज अभी इस नीरनिधि में 
थोड़ा-सा प्यार तुम भरो थोड़ा-सा हम भरें ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।।

खोल बेड़ियाँ दिल-ए-समंदर की ,
बयां भी कर उर की लहरों को। 
हम  भी नज़रों से नज़रों में ऐतबार भरें ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।।

कब तक निहारूँगा तेरे नयनों के मुकुलों को ,
कुदरत  ने साजिश रच रखी है प्रेम वृष्टि की। 
प्रभंजन भी अब मोह रही है ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।।

तेरे चक्षुओं ये प्यार टपकता है ,
गुलों से शबनम की तरह। 
गुमना  चाहता हूँ  तेरे इस रमणीक व्योम से परे ,
आओ चलो कुछ बात करें।।

तेरी जुल्फों का विपिन कितना प्यारा है ,
पर कटे एक परिंदे का सहारा है। 
अब तो दिलों की दिलों से मुलाकातें   करें,
आओ चलो भी न कुछ बातें  करें।।

आज जी लेंगे जिंदगी खुल कर ,
थाम हस्त , बाँहों में ले तुझे।
भू से "मयंक" की सैर करें ,
आओ चलो कुछ बातें  करें।।
             आओ चलो कुछ बातें  करें ........ 
                                                                                         -mksharma      

Thursday, 9 November 2017

ek jangal





   एक जंगल है  तेरी आँखों में , 
जहाँ मैं राह भूल जाता हूँ। 

तू किसी रेल - सी गुज़रती है ,
मैं किसी पुल  -  सा थरथरा जाता हूँ।
                                                  
                                                                               -दुष्यंत कुमार  

Tuesday, 7 November 2017

KUCH LUBHAVNE PAL


जन्दगी में कुछ पल इतने महफूज़ होते हैं की पत्थर की मिसाल बनकर हृदय में बस जाते हैं  लेकिन वो पल  बहुत ही थोड़े समय के  होते हैं जो पुरे जीवन का अर्थ समझा जाते हैं लेकिन  जब  तुम्हारे आस-पास फैले अराजक तत्वों की वजह से  एकदम से सब सिमट कर एक अँधेरी कोठरी में कैद हो जाते हैं। लेकिन भविष्य का कोई पता नहीं।  आइये ऐसी मनोदशा का रसपान करते हैं। 


खुशियों की नदियां बही जा रहीं थी 
उम्मीदों की कलियाँ खिली जा रहीं थी 
रज उड़ रही थी मुस्कराहट की 
देखा तो रम्य राधिका चली आ रही थी 
डगर चले तो मिल गया मुक्त-ए -दोस्ती का 
थाम लिया , साथ लिया 
सुन्दर बीज  बना लिया 
अभी वो उगा  ही था , भरोसे तले  दबा दिया 
सोचा था भरूंगा नीरनिधि को प्रेमरस से 
भांपकर  तू इसे, दुश्मन -ए -अगस्त्य बन गया 
मयूर  थी मेरे अनोखे उपवन की 
क्यूं  उड़ गयी हो परेशां इन कीड़े मकोड़ो से 
 ये तो झाड़ियों में छिपे थे और झाड़ियों में  रहेंगे 
हम शिला-ए दोस्ती थे और वही रहेंगे 
देखते हैं कौन रोकता है हमारी इन गर्ज़नों को 
चीर कर रख देंगे उन काले मुखौटों को 
हम साथ थे और साथ ही रहेंगे। 





Being a human

 इस मृत्युलोक में मानव का सबसे विराट वहम यह है कि वह जो देख रहा उन सब चीजों का मालिक बनना चाहता है और वो भी सदा के लिए। मन में एक लालसा बनी ...