जन्दगी में कुछ पल इतने महफूज़ होते हैं की पत्थर की मिसाल बनकर हृदय में बस जाते हैं लेकिन वो पल बहुत ही थोड़े समय के होते हैं जो पुरे जीवन का अर्थ समझा जाते हैं लेकिन जब तुम्हारे आस-पास फैले अराजक तत्वों की वजह से एकदम से सब सिमट कर एक अँधेरी कोठरी में कैद हो जाते हैं। लेकिन भविष्य का कोई पता नहीं। आइये ऐसी मनोदशा का रसपान करते हैं।
खुशियों की नदियां बही जा रहीं थी
उम्मीदों की कलियाँ खिली जा रहीं थी
रज उड़ रही थी मुस्कराहट की
देखा तो रम्य राधिका चली आ रही थी
डगर चले तो मिल गया मुक्त-ए -दोस्ती का
थाम लिया , साथ लिया
सुन्दर बीज बना लिया
अभी वो उगा ही था , भरोसे तले दबा दिया
सोचा था भरूंगा नीरनिधि को प्रेमरस से
भांपकर तू इसे, दुश्मन -ए -अगस्त्य बन गया
मयूर थी मेरे अनोखे उपवन की
क्यूं उड़ गयी हो परेशां इन कीड़े मकोड़ो से
ये तो झाड़ियों में छिपे थे और झाड़ियों में रहेंगे
हम शिला-ए दोस्ती थे और वही रहेंगे
देखते हैं कौन रोकता है हमारी इन गर्ज़नों को
चीर कर रख देंगे उन काले मुखौटों को
हम साथ थे और साथ ही रहेंगे।
No comments:
Post a Comment