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Tuesday, 7 November 2017

KUCH LUBHAVNE PAL


जन्दगी में कुछ पल इतने महफूज़ होते हैं की पत्थर की मिसाल बनकर हृदय में बस जाते हैं  लेकिन वो पल  बहुत ही थोड़े समय के  होते हैं जो पुरे जीवन का अर्थ समझा जाते हैं लेकिन  जब  तुम्हारे आस-पास फैले अराजक तत्वों की वजह से  एकदम से सब सिमट कर एक अँधेरी कोठरी में कैद हो जाते हैं। लेकिन भविष्य का कोई पता नहीं।  आइये ऐसी मनोदशा का रसपान करते हैं। 


खुशियों की नदियां बही जा रहीं थी 
उम्मीदों की कलियाँ खिली जा रहीं थी 
रज उड़ रही थी मुस्कराहट की 
देखा तो रम्य राधिका चली आ रही थी 
डगर चले तो मिल गया मुक्त-ए -दोस्ती का 
थाम लिया , साथ लिया 
सुन्दर बीज  बना लिया 
अभी वो उगा  ही था , भरोसे तले  दबा दिया 
सोचा था भरूंगा नीरनिधि को प्रेमरस से 
भांपकर  तू इसे, दुश्मन -ए -अगस्त्य बन गया 
मयूर  थी मेरे अनोखे उपवन की 
क्यूं  उड़ गयी हो परेशां इन कीड़े मकोड़ो से 
 ये तो झाड़ियों में छिपे थे और झाड़ियों में  रहेंगे 
हम शिला-ए दोस्ती थे और वही रहेंगे 
देखते हैं कौन रोकता है हमारी इन गर्ज़नों को 
चीर कर रख देंगे उन काले मुखौटों को 
हम साथ थे और साथ ही रहेंगे। 





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