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Saturday, 25 November 2017

शतरंजी दुनिया


This poem is dedicated to my juniors who are in my  school( SSDIC)


इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

चलो - गिरो - उठो 
फिर उठकर संभलना है 
पग - पग में हैं बाधाएं तुम्हारे 
चलते - चलते उन सबको राहों  में 
चूर -चूर कर जाना है 
इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

तुम ही हो स्वयं के निर्माता 
तुम ही हो अपने भाग्य -विधाता 
सत्य पथ पर चलकर तुमको 
सूरज-सा चमकना है 
इस शतरंजी  दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

कोई भटकायेगा तो कोई पर व्यथा सुनाएगा 
कोई बांह मरोड़ेगा तो कोई हार-जीत समझायेगा 
इन सबसे तुम्हें बाहर निकलना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

बंधी रीति-रिवाजों से मुक्त होकर 
बल, बुद्धि व साहस से युक्त होकर 
थाम संघषों की पतवार 
अब तो दरिया पार करना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

पंखों को फैलाना है हौसलों के ऊपर से 
आसमाँ को चूमने 
तुझको ही जाना है 
इस कालचक्र में तुझको उड़कर दिखलाना है 
इस शतरंजी दुनिया में 
चाल समझकर चलना है 

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