हिंदी कविताएं , लेख और कहानियां

Thursday, 25 January 2018

शायरी संग्रह








गणतंत्र दिवस (69वाँ)


आपको इस 69वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

आज हम सब 69वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे हैं लेकिन आज बहुत जन गणतंत्र से भली भांति परिचित नहीं हैं कि उसका मतलब क्या होता है? गणतंत्र हमारे लिए क्यों आवश्यक है?
गणतंत्र एक सफ़ल, जिम्मेदार तथा देशभक्त नागरिक का आधार है। गणतंत्र कोई उसूल नहीं जिसको हमें मानना ही पड़ेगा बल्कि यह एक स्तम्भ है जिसके सहारे हम अपने राष्ट्र की प्रतिष्ठा को उज्ज्वल तथा उन्नति के शिखर बिंदु पर पहुँचा सकते हैं उनमें से सबसे पहला कदम अखंडता का होगा, मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से भारत के नागिरकों के बीच अखंडता की ज्योति जलाने का संदेश देना चाहता हूँ।

इतिहास गवाह है इस धरती का
जब अराजकता का खरपतवार उगा है
हुई है क्रांति सच-फ़रेब में
तब जाकर यह गणतंत्र बना है
अब इस नव पीढ़ी के मस्तक पर
इस माँ की प्रतिष्ठा का ताज रखा है
उसके पीछे हम सबका उज्ज्वल भविष्य छिपा है
आ गयी है बारी हम सब की
उठो बंधुओं अपनी आँखें खोलो
आज हमें एक संकल्प उठाना है
न मैं, न तुम, न तेरा और न मेरा
बस इस भारत को अखण्ड बनाना है

-:जय हिंद:-
                   
                             -Mksharma

Tuesday, 23 January 2018

नूर

कितनी ख़ुशी मिलती है न जब जिसकी चाह हो वो मिल जाये चाहे वो जीवन का लक्ष्य वो या कोई सपना या फिर प्यार। वैसे ये सब हर किसी को नहीं मिलते ,उन्हीं को मिलते हैं जिसने सच्चे हृदय से पाने की चेष्ठा की हो।


हों मुश्किलें तो सफर का मज़ा ही कुछ और है
हो रूठना-मनाना तो इश्क़ का मज़ा ही कुछ और है
ज़ज़्बातों के ताजमहल होते तो सबके पास हैं
लेकिन मिल जाये नूर जिसको उसके जहाँ का मज़ा ही कुछ और है

-Mksharma

Wednesday, 17 January 2018

समझना

चंद पंक्तियाँ समझ आ जाएं तो बता देना🤣


कौन किसको कोई समझता है
कौन किसको कोई परखता है
बस फ़र्क हम और उनमें इतना है
न मैं उसको समझता हूँ न वो वो मुझको समझता है

"सूरज और उसकी अभिलाषा"

कितना प्यारा है ये पागल सूरज भी जो नहीं रोक पाया स्वयं को अपने जज़्बातों को शब्दों में रचने करने से:-


'सूरज' की
गुलबदन बाँहों का
तुम्हें राज़ क्या बतलाऊँ मैं

जब भी तुम
खिड़की खोलो
लपक कर तुम्हारी बाँहों में आऊँ मैं

इसकी किरणों की भी अज़ब लियाक़त है
देखो जब भी आईना तो
हो परिवर्तित तुम्हारी सूरत से टाकराऊँ मैं

इसकी रौशनी की भी दहलीज़ नहीं
होगी जब तुम खुले गगन में दिवस काल में
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में गिरकर बिख़र जाऊँ मैं

रवि आरज़ू ही अब इक्तिज़ा है
तुम अपनी आँखें खोलो
और उसमें समा जाऊँ मैं

                                       -सूरज(Mksharma)
गुलबदन- फूलों की तरह सुन्दर तथा कोमल
लियाक़त- योग्यता, अदा
दहलीज़- देहरी, limit
आरज़ू- इच्छा
इक्तिज़ा- चाह

Thursday, 11 January 2018

Yess!! it's

एक बुराई ये भी है:-


छीन लूँगा उसे इस बुनियादी तक़दीर से
बस वक़्त का तूफ़ान आने की देर है
मानिंद हूँ मैं उनके सफ़र की बेकसी का
बस यही तो उनकी नज़रों का फेर है

Wednesday, 10 January 2018

अपना ध्यान रखना।


तुम अभी न समझो मुझे कोई गम नहीं बस इतना ही कहना चाहूँगा तुमसे बस की जिस दिन तुमने मेरे लिए आँशू बहाये समझ लेना तुम मुझे समझ गईं।



Saturday, 6 January 2018

हमको तुमसे प्यार है


ये आसमाँ, ये चाँद और ये सूरज सब तुम्हारा होगा
बस एक बार किस्मत पे भरोसा करके तो देखो
बदल जायेगी ये जिंदगी एक खुशहाली की बगिया में
बस एक बार इस प्यार को अपना के तो देखो

प्यार की ठोकरें


भूल जाऊंगा तुझे तेरी ख़ुशी के लिए
लेकिन मेरा दिल गवारा नहीं करता
बस एक मौका तो दिया होता मुझे
बस मैं फिर किसी और का सहारा न करता
बिखर जाऊँगा फिर संवर भी जाऊंगा
बस तेरी यादों में बस कर रह जाऊंगा
हजारों ठोकरें खाईं हैं इस दिल ने
फिर एक ठोकर और सह कर जाऊंगा
मेरी जिंदगी तो लोहे की उल्टी कीलों पर चल रही है
बस थोड़ा पत्थर दिल होकर उनसे भी गुज़र जाऊंगा
अगर हो सच्ची मोहब्बत इस पत्थर दिल से
तो अपना लेना इसे सागर में डूब जाने से पहले
वरना बहुत कोशिशों के बाद भी नज़र न आऊंगा

                                   -Mksharma



Thursday, 4 January 2018

आज का यथार्थ

आज का यथार्थ(सियासत)

गधे आ रहे हैं गधे जा रहे हैं
गधे हँस रहे हैं गधे रो रहे हैं
इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
जिधर देखिये गधे ही गधे हैं
सड़कों पे घूमे वे कच्चे गधे हैं
माइक पे चीखें वे पक्के गधे हैं
खेतों पे दीखे वे फसली गधे हैं
कुर्सी पे बैठे वे असली गधे हैं
ये दुनियां का आलम गधों के लिए
ये संसार सालम गधों के लिए हैं

Tuesday, 2 January 2018

आज का प्रशासन


दोस्तों आज इस प्रशासन के हालात हमारे पूज्यनीय दादा जी (श्री रामकृष्ण ) द्वारा रचित कुछ पंक्तिओं के माध्यम से समझते हैं  की आज इस युग में हमारा प्रसाशन कैसा है ?

करत - करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान 
और बाद में खींचते कानन तीर कमान 
कानन तीर कमान खींचते देखे कई मिनिस्टर 
जिनके आगे भैंस बराबर होता काला अक्षर 
नेतागीरी करते - करते घाघ हो गए 
पहले थे बकरी अब मानो बाघ हो गए 

                                                                                 -पूज्यनीय दादा जी (श्री रामकृष्ण)

Being a human

 इस मृत्युलोक में मानव का सबसे विराट वहम यह है कि वह जो देख रहा उन सब चीजों का मालिक बनना चाहता है और वो भी सदा के लिए। मन में एक लालसा बनी ...