हिंदी कविताएं , लेख और कहानियां

Thursday, 4 January 2018

आज का यथार्थ

आज का यथार्थ(सियासत)

गधे आ रहे हैं गधे जा रहे हैं
गधे हँस रहे हैं गधे रो रहे हैं
इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
जिधर देखिये गधे ही गधे हैं
सड़कों पे घूमे वे कच्चे गधे हैं
माइक पे चीखें वे पक्के गधे हैं
खेतों पे दीखे वे फसली गधे हैं
कुर्सी पे बैठे वे असली गधे हैं
ये दुनियां का आलम गधों के लिए
ये संसार सालम गधों के लिए हैं

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