हिंदी कविताएं , लेख और कहानियां

Wednesday, 17 January 2018

"सूरज और उसकी अभिलाषा"

कितना प्यारा है ये पागल सूरज भी जो नहीं रोक पाया स्वयं को अपने जज़्बातों को शब्दों में रचने करने से:-


'सूरज' की
गुलबदन बाँहों का
तुम्हें राज़ क्या बतलाऊँ मैं

जब भी तुम
खिड़की खोलो
लपक कर तुम्हारी बाँहों में आऊँ मैं

इसकी किरणों की भी अज़ब लियाक़त है
देखो जब भी आईना तो
हो परिवर्तित तुम्हारी सूरत से टाकराऊँ मैं

इसकी रौशनी की भी दहलीज़ नहीं
होगी जब तुम खुले गगन में दिवस काल में
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में गिरकर बिख़र जाऊँ मैं

रवि आरज़ू ही अब इक्तिज़ा है
तुम अपनी आँखें खोलो
और उसमें समा जाऊँ मैं

                                       -सूरज(Mksharma)
गुलबदन- फूलों की तरह सुन्दर तथा कोमल
लियाक़त- योग्यता, अदा
दहलीज़- देहरी, limit
आरज़ू- इच्छा
इक्तिज़ा- चाह

2 comments:

Being a human

 इस मृत्युलोक में मानव का सबसे विराट वहम यह है कि वह जो देख रहा उन सब चीजों का मालिक बनना चाहता है और वो भी सदा के लिए। मन में एक लालसा बनी ...