हिंदी कविताएं , लेख और कहानियां

Wednesday, 18 July 2018

सुलोचना

दोस्तों!
आप सभी के जीवनकाल में कुछ न कुछ इच्छाएं ज़रूर होती है जिन्हें आप जीते जी पूरी होते देखना चाहते हैं कोई अपने कैरियर के बारे में सोचता है कोई ईश्वर का दर्शनाभिलाषी होता है तो कोई कुशलता पूर्वक समाज की सेवा करना चाहता है और हर किसी के जीवन में कुछ न कुछ या तो वो घटना होती है, या कोई वस्तु , व्यक्ति या ईश्वर जरूर होता है जिसका साथ वह हमेशा चाहता है चाहे वो सिद्धि या फिर शारीरिक बल है क्यों न हो। इस कविता का भी कुछ ऐसा ही मकसद है।



हे! सुलोचना तुम मुझसे दूर न जाना
तुमसे ही मैंने हमको पहचाना
हे! सुलोचना तुम मुझसे दूर न जाना

तुम गुल हो मेरे उर गुलशन के
महके हैं मेरे पथ मलयज वन से
तुम बिन रुदन करता ये रूप सुहाना
हे! सुलोचना तुम मुझसे दूर न जाना

औषधियां हैं तुम्हारी कंचन वानी
ईश्वर प्रदत्त एक रूप की रानी
सीखा तुमसे फूले गालों को रिझाना
हे! सुलोचना तुम मुझसे दूर न जाना

उड़ती तितली तुम नील गगन की
बहती बयार तुम वृंदावन की
मुझसे ज्यादा तुमने मुझको है जाना
हे! सुलोचना तुम मुझसे दूर न जाना

रगों - रगों में बहता प्यार तुम्हारा
चंद्रमुखी - सी चांदनी, हो सब संसार हमारा
हो चुका तुम्हारी अलबेले आलिंगन का दीवाना
हे! सुलोचना तुम मुझसे अब दूर न जाना

तुमसे ही मैंने हमको पहचाना
हे! सुलोचना मुझसे दूर न जाना
    
- नूतन पथ का बंजारा



इस ब्लॉग को अपना बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद.....

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