कुछ भावनाओं को समक्ष नहीं लिखित रूप में ही व्यक्त करना उचित होता है।
एक ढलती शाम भी कम लगती है
जब हम दोनों साथ होते हैं
दिन भी न जाने कितनी तीव्रता से गुजरता है
जब तेरे हाथ मेरे हाथ में होते हैं
ये धरती भी खिलता गुलाब होती है
जब तेरा ललाट मेरे कंधों पर होता है
इस उर का सरोवर भी झूम जाता है
जब तेरे लव्ज़ मेरे दिल की गहराइयों में समाते हैं
वो भी पराग का आशियाना लगता है
जब भी मेरा नाम तेरे होंठों से रसता है
गुल की खुशबू भी फीकी पड़ जाती है
जब वो हंसिका मेरे पास हो गुज़र जाती है
अब इस चाँद की चाँदनी भी फीकी नहीं रही
क्योंकि वो भी इस उर सरोवर में रोज नहाती है
-Mksharma
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