कभी कभी इस दुनियाँ में कुछ चित्र ऐसे नयनों में बस जाते हैं की सम्पूर्ण दिनचर्या वही तक सीमित रह जाती है।
एक तू ही है
जिसकी रश्मि होता है ,
चमकती है तू मेरे उस सूने प्रसून में
जिसकी गहराइयों में एक
आशा का बसेरा बसता है
नयन भी अब मोह जाते हैं
उस विलक्षण तश्वीर से ,
अतीत को मैं भूल गया
उसकी मुसकनों के संग मैं झूल गया
अब तो एक नई प्रीति बहार आने वाली है
एक तू ही है
जिसकी लालिमा मेरे हृदय में बसने वाली है
हो कुसुम तुम मेरे उस शशि की
जिसका भ्रमर यूँ बेताब है
कहने को तो तुम कुछ भी कहो
तू मेरा एक अकेला मनोहर ताज है।
please tell me how did you feel after reading this poem.
ReplyDeleteThanks for dedicate this to us. I really like it.
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