एक अधूरा किस्सा था, एक दुर्मुखता का बेगानापन
सहयात्रा का ख्वाब संजोया, भर नयनों में अपनापन
इससे पहले मैं कुछ कहता, बिखर गया ये कोमल मन
उनकी अधिमुखता को पाकर मैं, पा गया अकेलापन
रुदन करता,सिसकियां भरता निहार रहा था वीरानापन
सहन शक्ति की अग्नि परीक्षा, ले रहा था ये बिछड़न
तभी उठा, चला, भटका और संभाला ये गिरता तन
पथ भी एक, रथ भी एक उठा गांडीव किया प्रदर्शन
लगी गुत्थियों रिश्तों और जाली संबंधों का हुआ प्रभंजन
अब तू चल अकेला,बड़ अकेला बन जाएगा द्वापर का अर्जुन
Break all the fake relations and let you know yourself that you're the greated warrior on this planet.
-:Thank you:-
-नूतन पथ का बंजारा
Great
ReplyDelete