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भूमिका -
यह दृष्टान्त नव पीढ़ी के मन में पल रहे महाराणा प्रताप के जीवन को लेकर वैचारिक पूर्वाग्रहों को मिटाने की छोटी सी कोशिश मात्रा है वाम पंथी विचारों के माध्यम से उनके मन में उठे प्रश्नो के उत्तर उपलब्ध करा उनके उनके विचारों को शुद्ध करने का एक भाव पूर्ण प्रयास है इस दृष्टान्त में स्वयं महाराणाप्रताप एक जिज्ञासु नव युवक के मन की शंकाओं को मिटाते नज़र आते है।
नवयुवक - " आप एक छोटी सी रियासत 'चित्तौङ' के राजा थे आपका अकबर जैसे महान एवं शक्तिशाली सम्राट के आगे क्या महत्व?"
महाराणा प्रताप -" हाँ, मैं केवल मेवाड़ का शासक था लेकिन फिर भी छोटे से मेवाड़ में अकबर और उसकी विशाल सेना की रातों की नींदे उड़ा दीं थीं। मेवाड़ अकबर के साम्राज्य का अंग न स्वेच्छा से बना , न अकबर की कूटनीति से और न ही उसकी सैन्य शक्ति के भय से। अकबर यदि असफल हुआ तो केवल मेवाड़ में। उसकी साम , दाम, दण्ड और भेद की कोई भी नीति मेवाड़ की स्वाधीनता नहीं छीन सकी। क्या यह महत्वपूर्ण नहीं ?"
नवयुवक -" क्या आपको नहीं लगता की अपने अकबर से बैर मोल लेकर मेवाड़ की जनता की जान दांव पर लगा दी थी ? क्या इस संघर्ष से शांति बेहतर नहीं थी ?"
महाराणा प्रताप -" मेवाड़ अकबर के विरुद्ध नहीं अपितु अपनी स्वाधीनता के पक्ष में संघर्ष कर रहा था जिसमे स्वयं मेवाड़ की जनता सहमत थी। मेवाड़ के राजपूत हो या भील सब स्वाधीनता चाहते थे उस संघर्ष में हमें 36 कौमों की सहायता मिली। मेवाड़ की जनता के लिए पराधीनता में मिली शांति तो मौत से बदतर थी। "
नवुयवक -" लेकिन आपका संघर्ष केवल खुद की सत्ता बचाने के लिए ही रहा फिर इस स्वार्थपूर्ण संघर्ष में क्या विशेष है ?"
महाराणाप्रताप -" जिस काल खंड में राजघराने अपनी सत्ता बचाने के लिए मुग़लों के हांथों अपनी बहन - बेटियों के कूटनीतिक सौदे कर रहे थे उस स्थित में मेवाड़ ने अपनी स्वाधीनता के लिए संघर्ष को चुना। हमारे लिए सत्ता से ज्यादा हमारी बहन - बेटियों की इज़्ज़त ज्यादा महत्वपूर्ण थी बस यही हमारा स्वार्थ था। "
नवयुवक - " लेकिन अकबर के काल में भारत में विकास का युग रहा, उसने हिन्दुओं के लिए जजिया कर भी हटाया क्या ऐसे महान शासक से आपका संघर्ष जायज था ?"
महाराणा प्रताप -" एक बाहरी आक्रांता हमारे देश में आकर साम , दाम , दण्ड और भेद जैसी कूटनीतियों से यहाँ रियासतों को अपने अधीन करता है। कूटनीतियां विफल होने पर सैन्य शक्ति का भय दिखा उन्हें अधीन करता है लेकिन जब मेवाड़ में उसकी सभी चालें नकाबयाब होतीं हैं तब सतत सैन्य संघर्ष से मेवाड़ में अशांति फैलता है। क्या इसे आप विकास कहेंगे ? भारत की समृद्धि को भारत में ही भोगने की लालसा के चलते , मेवाड़ जैसा संघर्ष कहीं और न पनप पाए इस डर से अपने ही पूर्वजों द्वारा हिन्दुओं पर लगाए गए तीर्थ यात्रा कर को हटाना पड़ा। यह केवल एक कूटनीतिक चाल थी। यदि उसके मन में थोड़ी भी मानवता होती तो क्या मेवाड़ पर अधिकार जमाने हेतु वह मेवाड़ की ही जनता का नरसंहार करता? क्या हिन्दुओं का जबरन धर्मान्तरण होता ?"
नवयुवक -"चलिए माना की अपने मेवाड़ के लिए संघर्ष किया लेकिन भारत के लिए क्या किया ?"
महाराणा प्रताप -" बिना संस्कृति एवं धर्म के रक्षण के किसी भी देश का अस्तित्व नहीं हो सकता मेवाड़ के संघर्ष के पीछे एक मात्रा उद्देश्य भारत की आत्मा , उसके मूल सिद्धांतों का रक्षण था। "
नवयुवक -" आप धर्म की बात करते हैं अपने भी अपने भाई जगमाल को गद्दी से हटा खुद सत्ता संभाली क्या यह अधर्म नहीं है?"
महाराणा प्रताप -" मेवाड़ की गद्दी पर मेरा राजतिलक मेरा नहीं अपितु समस्त मेवाड़ की जनता का निर्णय था। जालौर के अखेराज एवं ग्वालियर के रामसिंह और मेवाड़ के समस्त सामंतों की आपसी सहमति के अनुरूप ही मैं मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा यदि जगमाल का मन साफ़ था तो वह क्यों मेवाड़ के दुश्मन अकबर से जा मिला।"
नवयुवक -" लेकिन आज के इस औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकी क्रांति के युग जहाँ भारत विकास के नए आयाम छू रहा है वहां हमें मेवाड़ के संघर्ष की कहाँ जरुरत है हम आखिर क्यों इस बहस में पड़ें की महाराण प्रताप महान हों या नहीं, आज के दौर में इसकी क्या ज़रूरत है ?"
महाराणा प्रताप - " ये तो आज के भारतीय समाज को स्वयं विचार करना होगा की उनके उनके गौरवशाली इतिहास की क्या आवश्यकता है ? मेवाड़ का संघर्ष महान था या नहीं ?"
नवयुवक ( सोचने के बाद )- " वास्तव में हमें हमारा गौरवशाली इतिहास ही भारतीय मूल्यों का जीवंत रूप दिखता है हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित प्रतिमान ही हमें भविष्य में धर्मानुसार आचरण करने हेतु प्रेरणा देते हैं मेवाड़ का संघर्ष सही मायनों में भारतीय संस्कृति का रूपक है जहाँ धर्म का रक्षण सत्ता भोग से कई गुना महत्वपूर्ण है सम्पूर्ण मेवाड़, मेवाड़ की जनता एवं उनका प्रतिनिधित्व करने वाले महाराणा प्रताप सही अर्थों में महान हैं। राणा प्रताप का जीवन ही हमें आधुनिक और मानवता के संरक्षण के मध्य सामंजस्य सिखाता है। "
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
Source:- दयानंद शाखा , अजयमेरु महानगर
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